वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज का नाम आज हर घर में सम्मान से लिया जाता है। उनकी सरल वाणी और गहन आध्यात्मिक ज्ञान ने लाखों लोगों को आकर्षित किया है। लेकिन उनके जीवन का एक ऐसा पहलू है, जो लोगों को हैरान कर देता है – उनके अपने बड़े भाई से उनकी सालों पुरानी दूरी। यह कहानी सिर्फ दूरी की नहीं, बल्कि एक गृहस्थ भाई के अपने संत भाई के प्रति गहरे सम्मान और आध्यात्मिक मर्यादा की है।
संत प्रेमानंद की त्याग की यात्रा
उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे प्रेमानंद जी का बचपन का नाम अनिरुद्ध पांडे था। बचपन से ही उनका मन धार्मिक कार्यों में रमा हुआ था। जैसे-जैसे वे बड़े हुए, संसार की मोह-माया से उनका मन विरक्त होता गया। अंततः, उन्होंने एक दिन घर और परिवार का मोह छोड़कर संन्यास का मार्ग अपना लिया। तमाम धार्मिक स्थलों पर साधना करने के बाद, वे वृंदावन में बस गए और अपना जीवन पूरी तरह राधा रानी की भक्ति में समर्पित कर दिया।
40 साल की दूरी: वजह जो दिल छू लेगी
प्रेमानंद जी के बड़े भाई गणेश दत्त पांडे अपने गृहस्थ जीवन में रहते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि वे पिछले 40 सालों से अपने छोटे भाई से नहीं मिले हैं। हालाँकि, उनके बीच कोई मनमुटाव नहीं है। इसके पीछे की वजह बिल्कुल अनोखी और आध्यात्मिक है। दरअसल, गणेश दत्त पांडे कहते हैं कि अगर वे अपने भाई के सामने जाएंगे, तो वे एक संत होने के नाते अपने बड़े भाई को प्रणाम करेंगे। एक गृहस्थ के लिए संत से प्रणाम लेना पाप होगा। इसलिए, वे जानबूझकर उनसे दूरी बनाए रखते हैं।
संत और गृहस्थ का अनूठा रिश्ता
यह घटना सनातन धर्म की उस गहरी मर्यादा को दर्शाती है, जहाँ संत को हमेशा सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। गणेश दत्त पांडे के इस निर्णय में सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक समझ भी झलकती है। वे यह मानते हैं कि उन्होंने इतना पुण्य नहीं कमाया है कि एक संत उनके पैरों में झुकें। उनका यह त्याग दिखावा नहीं, बल्कि एक सच्चे भक्त की निस्वार्थ भावना है, जो अपने भाई के संतत्व का पूर्ण सम्मान करता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते, बल्कि मर्यादा और सम्मान के धागों से भी बुने जाते हैं।